तुलसीदास के प्रसिद्ध दोहे | Tulsidas Ke Dohe in Hindi

तुलसीदास के प्रसिद्ध दोहे | Tulsidas Ke Dohe in Hindi

तुलसीदास जी के दोहे भारतीय साहित्य के महत्वपूर्ण हिंदी कवि और संत थे। उन्होंने अपनी कविताओं में धार्मिक और मानवता संबंधी बातें प्रस्तुत की हैं। उनके दोहे आम जनमानस के लिए उपयोगी जीवन सिखाने वाले हैं, और यह आज भी हमारे जीवन में महत्वपूर्ण हैं।

Tulsidas Ke Dohe :-

 
1.  राम नाम लखा कौड़ि अनुरागा।
     तिन मानस जन्म नरक जरागा॥

अर्थ: इस दोहे में तुलसीदास जी कह रहे हैं कि राम के नाम की भक्ति और प्रेम बहुत महत्वपूर्ण है। जब कोई व्यक्ति राम के नाम को प्रेम से लिखता है, तो वह तीनों लोकों में भी सुखी रहता है, और उसकी आत्मा नरक के दुख से मुक्त होती है।

 2.  बिनय करत आँख मिचौली।
      मंगल करत कृपा सब सोली॥

अर्थ: इस दोहे में तुलसीदास जी हमें यह सिखाते हैं कि हमें भगवान से अच्छी भावना के साथ प्रार्थना करनी चाहिए। जब हम सच्चे मन से भगवान से प्रार्थना करते हैं, तो वह हमारी प्रार्थना को सुनते हैं और हमें आशीर्वाद देते हैं।

3.  राम नाम जपत सुख बनाय।
     काल कलेवर धरत ध्यान लगाय॥

अर्थ: इस दोहे में तुलसीदास जी कह रहे हैं कि राम के नाम का जाप करने से सुख मिलता है। वे यह भी कहते हैं कि समय-समय पर काल कलेवर (मृत्यु) का सामना करते समय भी हमें ध्यान और भगवान की स्मृति में रहना चाहिए।

4. सुख संपत्ति और बोलचाल कुठिन,
    दिन दिन धरहर समुचर कुठिन।

अर्थ: इस दोहे में तुलसीदास यह सिखाते हैं कि सुख, संपत्ति, और बच्चे के बिना भी जीवन कठिन हो सकता है, और हर दिन की चुनौतियों का सामना करना होता है।

 5. “राम बिना जीवन अधूरा।
     तुलसी बिन राम भजन न धूरा।।”

अर्थ: “राम के बिना, जीवन अधूरा है। तुलसीदास कहते हैं कि भगवान के भजन के बिना, जीवन में सच्ची पूर्णता नहीं मिलती।”

6. “बिनु सत्संग मुक्ति नहीं होय।
     संत संग जानकर जाय।।”

अर्थ: “सत्संग के बिना, मुक्ति नहीं हो सकती। हमें साधु-संतों के साथ रहकर उनसे ज्ञान प्राप्त करना चाहिए।”

7.  सत्य तप दान व्रत नीति,
     सत्य दर्म रखें सदा भाई।

अर्थ: इस दोहे में तुलसीदास ने सत्य, तपस्या, दान, व्रत, नीति, और धर्म के महत्व को बताया है। वे कहते हैं कि हमें इन मूल्यों का पालन करना चाहिए और इन्हें हमेशा अपने जीवन में बनाए रखना चाहिए।

8.  “बिनु हरि भक्ति ग्यान न सुखी,
     संसार समुद्र अति दुःखी।”

अर्थ: इस दोहे में तुलसीदास कहते हैं कि भगवान की भक्ति बिना, ज्ञान और सुख की प्राप्ति असंभव है, और संसार अत्यधिक दुखदायक होता है।

 9. “बिनय करें रघुपति राय,
      तुलसी सुधा सरित सागर।”

अर्थ: इस दोहे में तुलसीदास राम भगवान से विनती करते हैं कि वे उनके भक्त की असीम दया और अनुग्रह करें, जैसे समुद्र में सुधा का सागर में मिल जाना।

10. “साधु संग भइ उदासी,
      समुद्र करे संकट सीस।”

अर्थ: इस दोहे में तुलसीदास कहते हैं कि जब कोई व्यक्ति साधुओं के संग में रहता है, तो वह संकटों का सामना करने में सरलता से समर्थ होता है।

11. बिना तप के अमरता पायी,
      ज्ञान बिना जीवन न होय।

अर्थ: इस दोहे में तुलसीदास यह बताते हैं कि अमरता या अनंत जीवन को प्राप्त करने के लिए तपस्या और ज्ञान की आवश्यकता है। इन दोनों तत्वों के बिना जीवन अधूरा होता है।

12. श्रीराम चंद्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणम्।
      नवकञ्ज लोचन, कञ्जमुख कर कञ्जपद कञ्जारुणम्॥

अर्थ: इस दोहे में तुलसीदास भक्तों को श्रीराम की भक्ति करने की सलाह देते हैं। वे कहते हैं कि श्रीराम चंद्र दयालु हैं और मन को हर लेते हैं। उनकी दर्शन से भवसागर का भय दूर हो जाता है। वे नीलमणि की तरह नवकञ्ज लोचन और कञ्जपद हैं। इस दोहे में भगवान राम की दिव्यता को प्रमुख रूप से बताया गया है।

 

 

 

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