लक्ष्मी माता और उनकी बहन दरिद्रा की कहानी | Laxmi Mata ki kahani

सनातन धर्म में धन संपदा और खुशहाली की देवी मां लक्ष्मी को भला कौन नहीं जानता है सप्ताह में शुक्रवार का दिन मां लक्ष्मी को समर्पित किया गया है। मां लक्ष्मी की बड़ी बहन भी है।देवी दरिद्रा अर्थात देवी लक्ष्मी गरीबी दुख और दुर्भाग्य की देवी हैं देवी दरिद्र। मां लक्ष्मी को सभी अपने घर में आमंत्रित करते हैं जबकि इसके विपरीत दरिद्रा को कोई अपना नहीं चाहता है। मां लक्ष्मी का मनमोहक स्वरूप लाल कपड़े में आभूषणों से सुसज्जित कमल पर विराजमान सोने और अन्य से भरा कलश हाथों में दिखता है मां लक्ष्मी को बहुत चंचल माना जाता है।

इसलिए उनको एक जगह पर बिठाए रखना कठिन कार्य है हम सभी जानते हैं कि मां लक्ष्मी धन वैभव सुख समृद्धि की देवी हैं वहीं दूसरी तरफ देवी लक्ष्मी की बड़ी बहन देवी दरिद्रा को गरीबी दुख और दुर्भाग्य की देवी माना जाता है। पुराणों में किए गए वर्णन से पता चलता है कि देवी दरिद्रा के बाल बिखरे हुए हैं उनकी आँखे लाल रहती हैं और वो हमेशा काले वस्त्र धारण किए रहती है। शिव पुराण में वर्णित कथा के अनुसार समुद्र मंथन के समय देवी लक्ष्मी के पहले दरिद्रा की उत्पत्ति हुई इसीलिए देवी दरिद्रा को देवी लक्ष्मी की बड़ी बहन माना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार देवी लक्ष्मी और देवी दरिद्रा दोनों बहनों के पास रहने का कोई निश्चित स्थान नहीं था इसलिए मां लक्ष्मी और उनकी बड़ी बहन दरिद्रा श्री विष्णु के पास गए और उनसे बोली हे जगत के पालनहार कृपया हमें रहने का स्थान दो हमारे पास नेगी का कोई पीपल को विष्णु भगवान से वरदान प्राप्त था कि जो व्यक्ति शनिवार को पीपल की पूजा करेगा उसके घर का ऐश्वर्य कभी नष्ट नहीं होगा।

श्री विष्णु ने कहा आप चिंता न करें

पीपल के वृक्ष पर भास्कर प्रभु इस तरह दोनों बहनें पीपल के वृक्ष में रहने लगी एक बार भगवान विष्णु ने देवी लक्ष्मी से विवाह करने की इच्छा रखी देवी लक्ष्मी हम आपसे विवाह करना चाहते लक्ष्मी माँ बोली हे प्रभु आप मुझे पति रूप में मिले तो ये तो मेरा परम सौभाग्य है. परंतु बड़ी बहन कुँवारी होते हुए छोटी बहन कैसे विवाह कर सकते हैं उनके विवाह के उपरांत ही मैं आप से विवाह कर सकती हूँ। विष्णु भगवान दरिद्रा से बोले अच्छा तो फिर बताओ दरिद्रा तुम कैसा वर पाना चाहती हो दरिद्रा बोली मैं तो ऐसा वर चाहती हूँ जो कभी पूजा पाठ न करें और मुझे ऐसे स्थान पर रखें जहां कोई पूजा पाठ न करता हो।

इसके बाद उन्होंने दरिद्रा का विवाह उद्दालक नाम के ऋषि से करवाया जब ऋषि दरिद्रा को लेकर अपने आश्रम में गए तो दरिद्रा ने उस आश्रम में प्रवेश करने से मना कर दिया नहीं स्वामी मैं आप की कुटिया में प्रवेश नहीं कर सकती। ऋषि बोले पर क्यों दरिद्रा मेरे आश्रम में कैसी परेशानी है अभी तो तुमने मेरी आश्रम को देखा तक नहीं दरिद्रा ने कहा मैं सिर्फ उन्हीं घरों में जाती हूँ जो घर गंदे रहते हो जहां के लोग हर समय लड़ाई झगड़ा करते रहते हो जहां लोग गंदे कपड़े पहनते हो और जहां रहने वाले लोग अधर्म या गलत काम करते हो जिन घरों में हमेशा साफ सफाई न रहती हो पर इस आश्रम को देखकर तो लगता है कि यहां के लोग सुबह जल्दी उठते हैं रोज भगवान की पूजा अर्चना करते हैं और साफ कपड़े पहनते हैं। ऐसे स्थानों पर में प्रवेश नहीं कर पाते ऐसे घरों में मेरी छोटी बहन देवी लक्ष्मी का अधिकार होता है। ऋषि उसके लिए उसका मन भावन स्थान ढूंढने निकल पड़े हैं लेकिन उन्हें कहीं पर भी ऐसा स्थान नहीं मिला।

श्री विष्णु ने पुनः लक्ष्मी के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा तो लक्ष्मी जी बोली प्रभु जब तक मेरी बहन की गृहस्थी नई बस्ती मैं विवाह नहीं करूंगी ठीक देवी लक्ष्मी धरती पर तो ऐसा कोई स्थान नहीं है। जहां कोई धर्म कार्य न होता इसलिए मैं अपने निवास स्थान पीपल को रविवार के लिए दरिद्रा व उसके पति को दे दूंगा उसी दिन से हर रविवार पीपल के नीचे देवताओं का वास न होकर दरिद्रता का वास होता है अतः इस दिन पीपल की पूजा वर्जित मानी जाती है। पीपल को विष्णु भगवान से वरदान प्राप्त है कि जो व्यक्ति शनिवार को पीपल की पूजा करेगा उस पर लक्ष्मी की अपार कृपा रहेगी और उसके घर का ऐश्वर्य कभी नष्ट नहीं होगा। इसीलिए लोग पीपल के वृक्ष को काटने से आज भी डरते हैं लेकिन यह भी बताया गया है कि यदि पीपल के वृक्ष को काटना बहुत जरूरी हो तो उसे रविवार को ही काटा जा सकता है।

मां लक्ष्मी को जहां मिष्ठान और मीठी वस्तु में पसंद है वहीं देवी दरिद्रा को खट्टी और तीखी से प्रिय होती है। कहा जाता है कि इसलिए ही घर और दुकान के बाहर नींबू मिर्च लटकाया जाता है क्योंकि इससे देवी दरिद्रा तृप्त होकर घर के बाहर से ही लौट जाती है और वो घर के अंदर प्रवेश नहीं करती है।

 

 

 

 

एक समय की बात है मोहनपुर नामक गांव में सदानंद नाम का एक गरीब ब्राह्मण रहता था वह स्वभाव से बहुत धर्म कर्म और पूजा पाठ करने वाला था ब्राह्मण नियम से रोजाना सुबह पीपल के पेड़ पर जल चढ़ा था उसी पेड़ पर मां लक्ष्मी का वास एक दिन

अमन की पूजा से प्रसन्न होकर मां लक्ष्मी ने एक लडकी का रूप धारण किया और पीपल में से निकलकर उस ब्राह्मण के पास आई तुम कौन हो बेटी सुमन मुझे पिता कहा है मेरा इस दुनिया में कोई भी नहीं है मैं आपको रोजाना यहां पीपल पर जल चढ़ाते हुए पूजा करते देखती हूं इसलिए मैंने आपको अपना पिता कहा है पिताजी या में

भी आपके साथ आपके घर चलो मेरे साथ पर मेरी तो पहले सहित छह लड़कियां है अगर में से अपने घर ले गया दो खिलाऊंगा क्या हम को रूखा सूखा खा लेते हैं और ये बेचारी रूखा सूखा कैसे सिखा पायेगी ब्राह्मण कुछ नहीं बोला और वापिस घर लौट आया अब ब्राह्मण जब भी पीपल पर जल चढ़ाने जाता तो ऐसा हर रोज होने लगा इसी चिंता में

ब्राह्मण बहुत कमजोर हो गया उसका मन शांत रहने लगा एक दिन ब्राह्मण की पत्नी उससे बोली सुनो जी क्या बात है आप कुछ दिनों से अशांत और दुखी दिखाई दे रहे में आप कितनी सेवा करती फिर भी आप इतने कमजोर क्यों होते जा रहे इसका क्या कारण हैं आपको कौन सी चिंता सता रही है मुझे कहिए शायद मैं आपकी कोई सहायता कर सको यशोदा कुछ दिनों से

जब भी पीपल पर जल चढ़ाना चाहता हूँ उस पीपल में से एक लडकी निकलकर आती है और मुझे बड़े प्रेम से पिताजी कहकर बुलाती है और रोजाना मेरे साथ आने की बात कहती है अब तुम्हीं बताओ हम उस कन्या को क्या खिलाएंगे और उसकी क्या सेवा करेंगे

इसमें चिंता की क्या बात है जहां हमारी छह लड़कियां है वहां एक और सईद और उसने आपको पिता कहा है अब हमारे यहां आएगी तो अपना भाग्य साथ लेकर आएगी इसलिए उसे अपने साथ ले आना अगले दिन जब कन्या रूप में मां लक्ष्मी ने ब्राम्हण को घर साथ चलने के लिए कहा तो वो लड़की को अपने साथ घर ले आया जिस दिन से ब्राह्मण उस लड़की को घर ले

उसी दिन से उसके दिन बदलने लगे यशोदा तुम्हें पता है परीक्षा के लिए जहां रोज मुझे एक या दो कटोरी आता मिलता था आज मुझे बुरी भरकर आटा चावल मिले हैं यशोदा मुझे तो लगता है कमला हमारे लिए देवी लक्ष्मी का रूप बन कर आई है वैसे हमारी बिटिया बाहर खेल रही है कमला बिटिया कहा है रसोई में जबरदस्ती खुद खाना बनाने चली गई

मैंने तो से कहा कि तो अभी बहुत छोटी है तेरा हाथ जल जाएगा पर्व नहीं मानी हम सबके लिए भोजन बना रही है

अच्छा फिर तुम्हें जल्दी से हाथ मुंह धोने पर अपनी कमला बिटिया के हाथ का गरम गरम भोजन खाउंगा कन्या ने घुटने के ने आता निकाला तो आरती की बरात अपने आप हर दिन वो कन्या जिस किसी चीज को हाथ लगा कि वो दुखी हो जाते कन्या रूपी देवी लक्ष्मी ने कई प्रकार के भोजन बना दिए सभी ने उस दिन भर पेट भोजन किया कमला तुमने तो

बहुत ही स्वादिष्ट भोजन बनाया है पिताजी तो आप थोड़ी सी दाल और ले लो सब भोजन कर चुके थे थोड़ी देर बाद ब्राह्मणी का भाई मिलने गया यशोदा बहन कहा हो अरे ज्ञान भैया आप अचानक गांव में थोड़ा जरूरी काम था सोचा तुम से मिलता चलो तुम बैठो मैं तुम्हारे लिए पानी लाती श्रोता बहन बहुत जोरों की भूख लगी है कुछ खाने को

हो तो वो भी लेती आना सबको भोजन कर चुके हैं अब में ज्ञान भैया को क्या खिलाऊंगी माँ क्या हुआ आप क्यों परेशान बेटी तेरे मामा आए हैं रसोई में कुछ भी खाने को नहीं है अब भैया को क्या दो उन्होंने खुद से भोजन की इच्छा जताई है माँ आप चिंता मत करो मैं कुछ करती हूं

कमला को साक्षात देवी लक्ष्मी थी रसोई में गई और अपने मामा के लिए स्वादिष्ट भोजन बना लाई उन्होंने खुशी खुशी भोजन किया शाम हुई तो कमला ब्राह्मणी से बोली माँ अब दिया जलाकर कोठरी में रक्त तो आज में यही सोचेंगे पर कमला बेटी तू अभी बहुत छोटी है यहां अकेले कैसे हो पाएगी तो डर गई तो माँ आप चिंता मत करो मैं नहीं

रोगी यशोदा को समझाकर कमला बनी लक्ष्मी मां कोठरी में ही सो गए आधी रात को कन्या के रूप में मां लक्ष्मी और थे और कोठरी में चारों ओर से और देखते ही देखते कोठरी में धन दौलत और अनाज के भंडार मां लक्ष्मी अपने देवी रूप में आदेश और वहां से जाने लगी तभी ब्राम्हण ने उन्हें आवाज लगाई देवी लक्ष्मी आप

मेरे घर में कन्या के रूप में बेटी बनकर आई और में आपको पहचान नहीं सका लक्ष्मी मां हम पर कृपा करो

देवी लक्ष्मी हमसे कोई भूल हुई हो तो हमें क्षमा कर देना तुम दोनों ने तो मेरी बहुत सेवा की है और मैं तुम दोनों की सेवा से बहुत प्रसन्न हूँ तुम दिन रात पूजा पाठ में ध्यान लगाते हुए मेरी पूजा करते हो सबका भला करते हो तुम्हारा स्वभाव बहुत ही दयालु है यह देखकर मुझे अपार प्रसन्नता हुई है मेरा आशीर्वाद सदैव तुम्हारे साथ रहेगा और

जीवन में धन दौलत वैभव और शांति में वृद्धि होगी इतना कहकर देवी लक्ष्मी अंतर्जाल और उस दिन से ब्राह्मण के घर में सभी प्रकार के सुखों का वास हो गया

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