रोगों की जड़ कहां है

रोगों की जड़ कहां है

बहुत से लोग ऐसे हैं, जिन्होंने अपने मन में कल्पना के महल बसा रखे हैं। बस उन्हीं के सहारे वे अपने-आपको बड़ा समझने लगते हैं और ऊंची-ऊंची बातें करने लगते हैं। आप जिन बातों से डरते हैं, अनजाने में उन्हीं का शिकार हो जाते हैं, इसी से वे बातें अपनी पकड़ को मजबूत करती हैं। आप जिन बातों की अधिक चिंता करते हैं, उन्हीं बातों से चिंता और अधिक बलवान होती है। आप अपनी कल्पना से ही किसी डर को जन्म देते हैं और फिर उसी से डरने लगते हैं। यह कैसा खेल है कि प्राणी स्वयं की ही कल्पना से डरने लगता है?

डर एक ऐसी चीज है जिसे हम स्वयं ही जन्म देते हैं। वैसे हम जिन चीजों से, जिन लोगों से, जिन विचारों से डरते हैं वास्तव में उन्हें इसी डर से शक्ति प्राप्त होती है, हम अपने शत्रु को स्वयं ही शक्तिशाली बनाते हैं।

आप किसी दुर्घटना की कल्पना करके ही डर जाते हैं, डर के मारे आपका हृदय कांपने लगता है। कई बार लोग इस डर को भी मन में बैठा लेते हैं कि उनके साथ कोई बुरा होने वाला है अथवा उनका नुकसान होने वाला है। यह कल्पना ही आपके लिये सबसे बड़ी दुर्घटना होगी जिसके डर से ही आपने अपना सब काम छोड़ दिया और भयभीत होकर अंदर जा बैठे। यही तो आपकी बदनसीबी का चिह्न है जिसे आप नहीं समझते। सब कुछ समझकर भी इसका शिकार हो जाते हैं।

काश! आप इस बुराई को भूलकर डर से दूर रहते हुए मन में यह धारण करें कि- मुझे तो अपने मन के इस डर को सबसे पहले भगाना है जो यह कहता है कि मैं सफल नहीं हो सकता। मुझे अपने मन से सारे हीन विचारों को निकाल फेंकना है। इस निराशा से भी दूर रहना है जो मेरी उन्नति के रास्ते में रोड़े अटकाती हैं।

यह मत भूलो कि ऐसे ही विचारों से दृढ़ विश्वास जन्म लेता है। यही दृढ़ विश्वास सफलता की कुंजी है और आपके मन में छुपे डर का शत्रु है। महान विश्व प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक हैलोन का कहना है कि, “यह हमारी आध्यात्मिक, मानसिक व शारीरिक हार की निशानी है। डर कर विजय पाना हमारी आत्मा व मन की हार है।”

डर का अर्थ है कि हम किसी भी काम को अपनी इच्छा से न कर सकें और अपने को उस काम के योग्य न समझकर मजबूर और बेबस मानें।

इस डर के कारण हमारा हृदय भी बेकार हो जाता है। हम जो चाहते हैं वह नहीं हो पाता जिससे हमारे शरीर में सुस्ती तथा ढीलापन आ जाता है।

यह बात याद रखने की है कि डर के पास अपनी कोई ताकत नहीं है। वह केवल हममें से किसी-न-किसी से शक्ति लेता है। यह बात सब जानते हैं कि मानव ही सबसे अधिक डरपोक है। वह तो कीड़ों-मकोड़ों, चूहों से भी डर जाता है। बाहर निकलता है तो उसे दुर्घटना होने का डर रहता है। ऐसे डर ही तो एक दिन ले डूबते हैं। दुर्घटना भी कभी-न-कभी हो ही जाती है।

कुछ लोग किसी काम को शुरू करने से पहले ही डर के मारे कहने लगते हैं नहीं… नहीं… यह काम मुझसे नहीं होगा मुझे तो इसे शुरू करते हुए भी डर लगता है। मुझे डर लग रहा है कि कहीं मेरा चलता हुआ धंधा ही चौपट न हो जाए। मैं रात वर्षा में भीग गया था, शायद आज मुझे बुखार न हो जाए।”

नया काम शुरू हुआ नहीं, डर पहले से पैदा हो गया। डर एक ऐसी चीज है कि जितनी बार आप इसे महसूस करते हैं, उतनी ही इसकी शक्ति बढ़ती है। ऐसे में आपको अपना बचाव करने के लिए अथवा सफलता प्राप्त करने के लिए यह मन में धारण करना चाहिए कि- “मैं यह काम कर सकता हूं। इस काम को करने में मुझे कोई परेशानी नहीं है … मैं इस काम को पूरा करके ही दम लूंगा। मैं इतना कमजोर नहीं हूं जो इस काम से डर कर बैठ जाऊंगा। मुझे इस काम को पूरा करना है, यही मेरा अंतिम निर्णय है इससे मुझे कोई नहीं रोक सकता।

आपकी ऐसी भावना दृढ़ विश्वास की प्रतीक है। जैसे ही आप को विश्वास मिलता है तो कठिन से कठिन काम भी सरल नजर आता है और उसमें आपको सफलता मिलेगी। किसी व्यक्ति के पूर्वज यदि किसी विशेष रोग से मरे हों तो वह यह सोचने लगे कि उस रोग के कारण उसकी भी मृत्यु हो सकती है, यानि अपने पूर्वजों की मृत्यु के डर ने उसे आकर घेर लिया, यह डर उसे अंदर-ही-अंदर दीमक की भांति चाटने लगता है। पूर्वजों के रोग से शायद वह बच भी जाता मगर डर के रोग से वह नहीं बच पाएगा।

मेरा एक व्यापारी दोस्त था, मैं जितनी बार भी उससे मिलने जाता वह उतनी ही बार मुझे बताता कि उसका पेट खराब रहता है जिसके कारण उसे भूख बिलकुल नहीं लगती। कुछ हजम नहीं हो पाता। मुझे तो अब डर लग रहा है कि इस पेट की खराबी के कारण उसके शरीर में और कोई भयंकर रोग न जन्म ले ले।

मैं समझ गया कि यह आदमी वहमी है। इसने स्वयं ही यह जान लिया है कि मैं पेट रोग का शिकार हो गया हूं। हालांकि उसे किसी डॉक्टर ने यह नहीं बताया था कि उसे पेट का रोग है। उसने बस मन पर यह बात बैठा दी कि उसे पेट रोग है जो धीरे-धीरे किसी भयंकर रोग को जन्म दे सकता है।

उस आदमी को यह नहीं पता था कि मानव के पाचन अंग तो बहुत कोमल होते हैं। ऐसे कोमल अंग तो वहम और शंका के बोझ से बहुत जल्द प्रभावित होते हैं। यदि हम इन पर हर समय वहम और शंका का बोझ डालते रहेंगे तो फिर ये काम कहां से कर पाएंगे?

एक डॉक्टर को उसके साथी डॉक्टर ने बताया कि खून में जहर मिल जाने के कारण उसकी मृत्यु हो जाएगी। बस फिर क्या था? डॉक्टर समझ गया कि उसका जीवन शेष नहीं रह गया। इसी डर से उसने अपने घरवालों को अपने पास बुलाया और उन्हें बताया कि- देखो, अब में कुछ ही दिनों का मेहमान हूं क्योंकि मेरे खून में जहर घुल रहा है उसी कारण मेरी मौत हो जाएगी इसलिए मैं मरने से पहले ही अपनी वसीयत तैयार कर रहा हूं…

यह भी बड़े आश्चर्य की बात है कि जैसे ही उस डॉक्टर ने अपनी वसीयत तैयार की उसी समय उसकी मृत्यु हो गई।

कैलिफोर्निया के एक व्यापारी ने आत्महत्या करके अपने जीवन का अंत करने का निर्णय लिया परन्तु जैसे ही उसने अपने पिस्तौल की गोली चलानी चाही तो उससे गोली चल ही नहीं पायी…

मगर वह आदमी अपने दुःखों और आत्मिक डर से इतना टूट चुका था कि… उसी समय उसके दिल की धड़कन बंद हो गई। जो काम गोली नहीं कर सकी वह उसके दिल की धड़कन ने बंद होकर कर दिया।

यह बात तो माननी ही पड़ेगी कि विचारों के प्रभाव से बचना बहुत कठिन है।

Leave a Comment