प्यादे से फरजी भयो 

प्यादे से फरजी भयो

प्यादे से फरजी भयो 
canva

प्रसिद्ध कहावत है-‘प्यादे से फरजी भयो, टेढ़ो-टेढ़ो जाय’। यानी छोटे मन वाले व्यक्ति को जब कोई बड़ा पद मिल जाता है, तो वह अहंकार में आकर अकरणीय कार्य कर बैठता है। विरोचन पुत्र बलि की कथा इससे भी निराली है। बलि मनुष्य जन्म में बड़ा ही जुआरी और वेश्यागामी था। अपनी कुटिलता से धन जीतता और वेश्या के चरणों में रख देता। वह मद्य-मांस का सेवन कर, रात्रि वेश्या के घर में ही बिताया करता था। एक पान का सुन्दर बीड़ा, सुगन्धित व ताजे पुष्पों का हार, स्वादिष्ट मिष्ठान्न आदि-आदि लेकर वेश्या से मिलने के लिए, उसके घर की ओर जा रहा था। मद्यपान के कारण उसके पैर चलने में डगमगा रहे थे। चलते- चलते एक स्थान पर वह गिर गया। नशा के उतरने पर वह उठा, तो उसे अपने इस कृत्य पर आत्मग्लानि हो रही थी। सामने भगवान् शिव का मन्दिर देख, वेश्या के स्वागत के लिए ले जा रही सारी की सारी सामग्री उसने भगवान् शिव को अर्पित कर दी। कुछ दिनों के बाद उसकी मौत हो गई। यमराज ने कहा- निकृष्ट कर्मों के कारण इसे घोर नरक भोगना पड़ेगा। जुआरी गिड़गिड़ाया, कि मेरा कोई सुकृत भी हो तो, देख लिया जाए। चित्रगुप्त ने शिव पूजन का एक पुण्य बताया। यमराज ने कहा- इस सुकृत से तीन घड़ी के लिए तुम्हें स्वर्ग और उतने ही समय के लिए इन्द्रासन भी प्राप्त होगा। जुआरी ने कहा- तो मुझे सुकृत का ही फल पहले भोगने की आज्ञा दें। यमराज की आज्ञा से वृहस्पति उसे लेकर इन्द्र के समीप पहुँचे और बोले- देवराज! इस जुआरी को तीन घड़ी के लिए स्वर्ग और इन्द्रासन प्राप्त हुआ है। उक्त समय के लिए आप इन्द्रासन त्याग दीजिए। गुरु की आज्ञा मानकर इन्द्र ने अपना इन्द्रासन छोड़ दिया। जुआरी अब होश में था। उसने सोचा कि इस अल्पावधि में जितना भी हो, सुकृत कर लिया जाए क्योंकि अनजान में किए थोड़े से ही सुकृत से मुझे यह स्थान मिला है। उसने पात्र ऋषि-मुनियों तथा अन्यों को दान देना प्रारम्भ कर दिया। उसने ऐरावत हाथी, कौस्तुभ मणि, कामधेनु गौ, चिन्तामणि, उच्चैश्रवा घोड़ा आदि जो मूल्यवान व स्वर्ग की शोभा बढ़ाने वाली वस्तुएँ थीं, वो सभी की सभी दान कर दी। धन-सम्पत्ति व वैभव की सभी वस्तुएँ भी दान कर दी। तीन घड़ी में उसके दोनों हाथ दान करने के लिए चल रहे थे। तीन घड़ी का समय होने पर, यमदूत उसे लेकर यमलोक में जा पहुँचे । इन्द्र जब पुनः अपने आसन पर विराजे तो देखा कि बलि ने तो सारा कोष खाली कर दिया है। इन्द्र ने अपनी व्यथा वृहस्पति को बताई। गुरु ने कहा- इन्द्र ! तुम वृद्ध हो गए हो। तुम्हारी तृष्णा अभी भी मिटी नहीं है। उस जुआरी को तो देखो, उसे केवल तीन घड़ी के लिए स्वर्ग मिला था, इतने कम समय में ही उसने अक्षय पुण्य कमा लिया है। इन सुकृतों के कारण उसे नरक से मुक्ति मिल गई और उस पुण्य के प्रताप से वह इस पृथ्वी का राजा बन गया। यदि फरजी बनने पर भी जुआरी टेड़ा-टेड़ा चलता, तो केवल तीन घड़ी का ही सुख उसे मिल सकता था। अधिकार मिलने पर निरहंकारी बने रहना ही मनुष्यत्व है।

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